Top 16+ Famous Harivansh Rai Bachchan Poems In Hindi

Hello Friends, today I brought a collection of best “Harivansh Rai Bachchan Poems In Hindi (हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ हिंदी में)” for you guys. In this page you will get some of the best inspirational Harivansh Rai Bachchan Poems. If you find this post helpful and entertaining you can share it with you friends.

Table of Contents

Harivansh Rai Bachchan Biography (हरिवंश राय बच्चन की जीवनी)

Harivansh Rai Bachchan” was a celebrated Indian poet and one of the most well-known Hindi-speaking poets of the twentieth century. His epic lyric poem “Madhushala – The House of Wine,” published in 1935, gained him a huge following. Even in modern times, his heartfelt literary viewpoint continues to impress individuals of all ages.

Let us learn more about “Dr. Harivansh Rai Bachchan” ji, who has made an unforgettable contribution to Hindi literature.

Harivansh Rai Bachchan was born on November 27, 1907, in Bapupatti village, Pratapgarh district, Uttar Pradesh, to a Kayastha family. Pratap Narayan Srivastava was his father’s name, and Saraswati Devi was his mother’s.

Harivansh Rai Bachchan
Harivansh Rai Bachchan P.C : wikipedia.org

His parents used to refer to him as Bachhan, which literally means “baby,” or “child.” Dr. Harivansh Rai Bachchan grew up in the village of Bapupatti.

Harivansh Rai Bachchan’s surname was originally Srivastava, but because he had been called “Bachcha” since childhood, his surname was later changed to Bachchan.

PointsInformation
NameDr. Harivansh Rai Bachchan
Birth Date27 nov 1907
Age95 yrs
Place of BirthBapupatti village, Pratapgarh district, Uttar Pradesh,
Father’s NamePratap Narayan Srivastava
Mother’s NameSaraswati Devi
Wife NameShyama Devi (First Wife), Teji Bachchan(Second Wife)
Occupationwriter, poet, litterateur
AwardPadma Bhushan, Sahitya Akademi etc.
ChildrenAmitabh Bachchan
Death Date18 jan, 2003
Famous PeomThe House Of Wine ‘मधुशाला’
About Harivansh Rai Bachchan

Although, “Harivansh Rai Bachchan” ji has written dozens of poems, but some of them which people have liked a lot on Internet, Social Media are the following, so let’s see which are those 16+ famous poems which are Written by “Harivansh Rai Bachchan”.

Harivansh Rai Bachchan Poems In Hindi (हरिवंश राय बच्चन की कविताएँ हिंदी में)

  1. हम गाँधी की प्रतिभा के इतने पास खड़े !
  2. ओ देशवासियों, बैठ न जाओ पत्‍थर से !
  3. ऐसा भी कोई जीवन का मैदान कहीं !
  4. अग्निपथ !
  5. मैं कल रात नहीं रोया था !
  6. पतझड़ की शाम !
  7. मैंने मान ली तब हार !
  8. आ रही रवि की सवारी !
  9. पथ की पहचान !
  10. राष्ट्रिय ध्वज !
  11. को‌ई गाता मैं सो जाता !
  12. साथी, सब कुछ सहना होगा !
  13. चल मरदाने !
  14. आज़ादी का गीत !
  15. यात्रा और यात्री !
  16. दिन जल्दी-जल्दी ढलता है !

1. हम गाँधी की प्रतिभा के इतने पास खड़े – Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi

हम गाँधी की प्रतिभा के इतने पास खड़े,
हम देख नहीं पाते सत्‍ता उनकी महान ।
उनकी आभा से आँखें होतीं चकाचौंध,
गुण-वर्णन में साबित होती गूँगी ज़बान ।।

वे भावी मानवता के हैं आदर्श एक,
असमर्थ समझने में है उनको वर्तमान ।
वर्ना सच्‍चाई और अहिंसा की प्रतिमा,
यह जाती दुनिया से होकर लोहू लुहान! ।।

जो सत्‍यं, शिव, सुन्‍दर, शुचितर होती है,
दुनिया रहती है उसके प्रति अंधी, अजान ।
वह उसे देखती, उसके प्रति नतशिर होती,
जब कोई कवि करता उसको आँखें प्रदान।।

जिन आँखों से तुलसी ने राघव को देखा,
जिस अतर्दृग से सूरदास ने कान्‍हा को ।
कोई भविष्‍य कवि गाँधी को भी देखेगा,
दर्शाएगा भी उनकी सत्‍ता दुनिया को ।।

भारत का गाँधी व्‍यक्‍त नहीं तब तक होगा,
भारती नहीं जब तक देती गाँधी अपना ।
जब वाणी का मेधावी कोई उतरेगा,
तब उतरेगा पृथ्‍वी पर गाँधी का सपना ।।

जायसी, कबीरा, सूरदास, मीरा, तुलसी,
मैथिली, निराला, पंत, प्रसाद, महादेवी,
ग़ालिबोमीर, दर्दोनज़ीर, हाली, अकबर,
इक़बाल, जोश, चकबस्‍त फिराक़, जिगर, सागर,
की भाषा निश्‍चयवरद पुत्र उपजाएगी ।
जिसके प्रसाद-माधुर्य-ओजमय वचनों में,
मेरी भविष्‍य वाणी सच्‍ची हो जाएगी ।।


2. ओ देशवासियों, बैठ न जाओ पत्‍थर से! – Harivansh Rai Bachchan Ki Kavita

ओ देशवासियों, बैठ न जाओ पत्‍थर से,
ओ देशवासियों, रोओ मत यों निर्झर से ।
दरख्‍वास्‍त करें, आओ, कुछ अपने ईश्‍वर से
वह सुनता है ग़मज़ादों और रंजीदों की ।।

जब सार सरकता-सा लगता जग-जीवन से,
अभिषिक्‍त करें, आओ, अपने को इस प्रण से ।
हम कभी न मिटने देंगे भारत के मन से
दुनिया ऊँचे आदर्शों की, उम्‍मीदों की ।।

माधना एक युग-युग अंतर में ठनी रहे
यह भूमि बुद्ध-बापू-से सुत की जनी रहे ।
प्रार्थना एक युग-युग पृथ्‍वी पर बनी रहे
यह जाति योगियों, संतों और शहीदों की ।।


3. ऐसा भी कोई जीवन का मैदान कहीं! – Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi

ऐसा भी कोई जीवन का मैदान कहीं,
जिसने पाया कुछ बापू से वरदान नहीं?
मानव के हित जो कुछ भी रखता था माने ।
बापू ने सबको गिन-गिनकर अवगाह लिया।।

बापू की छाती की हर साँस तपस्‍या थी
आती-जाती हल करती एक समस्‍या थी ।
पल बिना दिए कुछ भेद कहाँ पाया जाने,
बापू ने जीवन के क्षण-क्षण को थाह लिया ।।

किसके मरने पर जगभर को पछताव हुआ?
किसके मरने पर इतना हृदय-माथव हुआ?
किसके मरने का इतना अधिक प्रभाव हुआ?

बनियापन अपना सिद्ध किया अपना सोलह आने,
जीने की किमत कर वसूल पाई-पाई,
मरने का भी बापू ने मूल्‍य उगाह लिया ।।


4. अग्निपथ! – Inspirational Harivansh Rai Bachchan Poems

वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े ।
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ ।।

तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी ।
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ ।।

यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है।
अश्रु स्वेद रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ ।।


5. मैं कल रात नहीं रोया था! – Harivansh Rai Bachchan Ki Rachnaye

मैं कल रात नहीं रोया था !

दुख सब जीवन के विस्मृत कर,
तेरे वक्षस्थल पर सिर धर ।
तेरी गोदी में चिड़िया के बच्चे-सा छिपकर सोया था,
मैं कल रात नहीं रोया था ।।

प्यार-भरे उपवन में घूमा,
फल खाए, फूलों को चूमा ।
कल दुर्दिन का भार न अपने पंखो पर मैंने ढोया था!
मैं कल रात नहीं रोया था ।।

आँसू के दाने बरसाकर
किन आँखो ने तेरे उर पर।
ऐसे सपनों के मधुवन का मधुमय बीज, बता, बोया था?
मैं कल रात नहीं रोया था ।।


6. पतझड़ की शाम! – Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi

है यह पतझड़ की शाम, सखे !

नीलम-से पल्लव टूट ग‌ए,
मरकत-से साथी छूट ग‌ए ।
अटके फिर भी दो पीत पात,
जीवन-डाली को थाम, सखे !
है यह पतझड़ की शाम, सखे ।।

लुक-छिप करके गानेवाली,
मानव से शरमानेवाली।
कू-कू कर कोयल माँग रही,
नूतन घूँघट अविराम, सखे,
है यह पतझड़ की शाम, सखे ।।

नंगी डालों पर नीड़ सघन,
नीड़ों में है कुछ-कुछ कंपन ।
मत देख, नज़र लग जा‌एगी;
यह चिड़ियों के सुखधाम, सखे !
है यह पतझड़ की शाम, सखे ।।


7. मैंने मान ली तब हार! – Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi

पूर्ण कर विश्वास जिसपर,
हाथ मैं जिसका पकड़कर था चला,
जब शत्रु बन बैठा हृदय का गीत,
मैंने मान ली तब हार ।।

विश्व ने बातें चतुर कर,
चित्त जब उसका लिया हर ।
मैं रिझा जिसको न पाया गा सरल मधुगीत,
मैंने मान ली तब हार ।।

विश्व ने कंचन दिखाकर,
कर लिया अधिकार उसपर ।
मैं जिसे निज प्राण देकर भी न पाया जीत,
मैंने मान ली तब हार ।।


8. आ रही रवि की सवारी! – Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi

आ रही रवि की सवारी !

नव-किरण का रथ सजा है,
कलि-कुसुम से पथ सजा है।
बादलों-से अनुचरों ने स्‍वर्ण की पोशाक धारी,
आ रही रवि की सवारी।।

विहग, बंदी और चारण,
गा रही है कीर्ति-गायन।
छोड़कर मैदान भागी, तारकों की फ़ौज सारी,
आ रही रवि की सवारी।।

चाहता, उछलूँ विजय कह,
पर ठिठकता देखकर यह।
रात का राजा खड़ा है, राह में बनकर भिखारी,
आ रही रवि की सवारी।।


9. पथ की पहचान! – Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi

पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले,
पुस्तकों में है नहीं छापी गई इसकी कहानी,
हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की जबानी,
अनगिनत राही गए इस राह से, उनका पता क्या,
पर गए कुछ लोग इस पर छोड़ पैरों की निशानी,
यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है,

खोल इसका अर्थ, पंथी, पंथ का अनुमान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।।

है अनिश्चित किस जगह पर सरित, गिरि, गह्वर मिलेंगे,
है अनिश्चित किस जगह पर बाग वन सुंदर मिलेंगे,
किस जगह यात्रा खतम हो जाएगी, यह भी अनिश्चित,
है अनिश्चित कब सुमन, कब कंटकों के शर मिलेंगे
कौन सहसा छूट जाएँगे, मिलेंगे कौन सहसा,

आ पड़े कुछ भी, रुकेगा तू न, ऐसी आन कर ले।
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।।

कौन कहता है कि स्वप्नों को न आने दे हृदय में,
देखते सब हैं इन्हें अपनी उमर, अपने समय में,
और तू कर यत्न भी तो, मिल नहीं सकती सफलता,
ये उदय होते लिए कुछ ध्येय नयनों के निलय में,
किंतु जग के पंथ पर यदि, स्वप्न दो तो सत्य दो सौ,

स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो, सत्य का भी ज्ञान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।।

स्वप्न आता स्वर्ग का, दृग-कोरकों में दीप्ति आती,
पंख लग जाते पगों को, ललकती उन्मुक्त छाती,
रास्ते का एक काँटा, पाँव का दिल चीर देता,
रक्त की दो बूँद गिरतीं, एक दुनिया डूब जाती,
आँख में हो स्वर्ग लेकिन, पाँव पृथ्वी पर टिके हों,

कंटकों की इस अनोखी सीख का सम्मान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।।

यह बुरा है या कि अच्छा, व्यर्थ दिन इस पर बिताना,
अब असंभव छोड़ यह पथ दूसरे पर पग बढ़ाना,
तू इसे अच्छा समझ, यात्रा सरल इससे बनेगी,
सोच मत केवल तुझे ही यह पड़ा मन में बिठाना,
हर सफल पंथी यही विश्वास ले इस पर बढ़ा है,

तू इसी पर आज अपने चित्त का अवधान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।।


10. राष्ट्रिय ध्वज! – Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi

नागाधिराज श्रृंग पर खडी हु‌ई,
समुद्र की तरंग पर अडी हु‌ई ।
स्वदेश में जगह-जगह गडी हु‌ई,
अटल ध्वजा हरी,सफेद केसरी ।।

न साम-दाम के समक्ष यह रुकी,
न द्वन्द-भेद के समक्ष यह झुकी ।
सगर्व आस शत्रु-शीश पर ठुकी,
निडर ध्वजा हरी, सफेद केसरी ।।

चलो उसे सलाम आज सब करें,
चलो उसे प्रणाम आज सब करें ।
अजर सदा इसे लिये हुये जियें,
अमर सदा इसे लिये हुये मरें,
अजय ध्वजा हरी, सफेद केसरी ।।


11. को‌ई गाता मैं सो जाता! – Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi

संस्रिति के विस्तृत सागर में,
सपनो की नौका के अंदर ।
दुख सुख कि लहरों मे उठ गिर,
बहता जाता, मैं सो जाता ।।

आँखों में भरकर प्यार अमर,
आशीष हथेली में भरकर ।
को‌ई मेरा सिर गोदी में रख,
सहलाता, मैं सो जाता ।।

मेरे जीवन का खाराजल,
मेरे जीवन का हालाहल ।
को‌ई अपने स्वर में मधुमय कर,
बरसाता मैं सो जाता ।।

को‌ई गाता मैं सो जाता ।
मैं सो जाता, मैं सो जाता ।।


12. साथी, सब कुछ सहना होगा! – Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi

साथी, सब कुछ सहना होगा!

मानव पर जगती का शासन,
जगती पर संसृति का बंधन ।
संसृति को भी और किसी के प्रतिबंधों में रहना होगा,
साथी, सब कुछ सहना होगा ।।

हम क्या हैं जगती के सर में,
जगती क्या, संसृति सागर में ।
एक प्रबल धारा में हमको लघु तिनके-सा बहना होगा,
साथी, सब कुछ सहना होगा ।।

आओ, अपनी लघुता जानें,
अपनी निर्बलता पहचानें ।
जैसे जग रहता आया है उसी तरह से रहना होगा,
साथी, सब कुछ सहना होगा ।।


13. चल मरदाने! – Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi

चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।

एक हमारा देश, हमारा
वेश, हमारी कौम, हमारी
मंज़िल, हम किससे भयभीत ।

चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।

हम भारत की अमर जवानी,
सागर की लहरें लासानी,
गंग-जमुन के निर्मल पानी,
हिमगिरि की ऊंची पेशानी
सबके प्रेरक, रक्षक, मीत ।

चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।

जग के पथ पर जो न रुकेगा,
जो न झुकेगा, जो न मुडेगा,
उसका जीवन, उसकी जीत ।

चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।


14. आज़ादी का गीत! – Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi

हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल !

चांदी, सोने, हीरे मोती से सजती गुड़िया,
इनसे आतंकित करने की घडियां बीत गई ।
इनसे सज धज कर बैठा करते हैं जो कठपुतले,
हमने तोड़ अभी फेंकी हैं हथकडियां ।।

परम्परागत पुरखो की जागृति की फिर से,
उठा शीश पर रक्खा हमने हिम-किरीट उजव्व्ल,
हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल ।।

चांदी, सोने, हीरे, मोती से सजवा छाते,
जो अपने सिर धरवाते थे अब शरमाते ।
फूल कली बरसाने वाली टूट गई दुनिया,
वज्रों के वाहन अम्बर में निर्भय गहराते ।।

इन्द्रायुध भी एक बार जो हिम्मत से ओटे,
छत्र हमारा निर्मित करते साठ-कोटी करतल,
हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल ।।


15. यात्रा और यात्री! – Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi

साँस चलती है तुझे चलना पड़ेगा ही मुसाफिर ।

चल रहा है तारकों का दल गगन में गीत गाता,
चल रहा आकाश भी है शून्य में भ्रमता-भ्रमाता,
पाँव के नीचे पड़ी अचला नहीं, यह चंचला है,
एक कण भी, एक क्षण भी एक थल पर टिक न पाता,
शक्तियाँ गति की तुझे सब ओर से घेरे हु‌ए है;
स्थान से अपने तुझे टलना पड़ेगा ही, मुसाफिर!

साँस चलती है तुझे चलना पड़ेगा ही मुसाफिर ।

थे जहाँ पर गर्त पैरों को ज़माना ही पड़ा था,
पत्थरों से पाँव के छाले छिलाना ही पड़ा था,
घास मखमल-सी जहाँ थी मन गया था लोट सहसा,
थी घनी छाया जहाँ पर तन जुड़ाना ही पड़ा था,
पग परीक्षा, पग प्रलोभन ज़ोर-कमज़ोरी भरा तू,
इस तरफ डटना उधर ढलना पड़ेगा ही, मुसाफिर;

साँस चलती है तुझे चलना पड़ेगा ही मुसाफिर ।

शूल कुछ ऐसे, पगो में चेतना की स्फूर्ति भरते,
तेज़ चलने को विवश करते, हमेशा जबकि गड़ते,
शुक्रिया उनका कि वे पथ को रहे प्रेरक बना‌ए,
किन्तु कुछ ऐसे कि रुकने के लि‌ए मजबूर करते,
और जो उत्साह का देते कलेजा चीर,
ऐसे कंटकों का दल तुझे दलना पड़ेगा ही, मुसाफिर;

साँस चलती है तुझे चलना पड़ेगा ही मुसाफिर ।

सूर्य ने हँसना भुलाया, चंद्रमा ने मुस्कुराना,
और भूली यामिनी भी तारिका‌ओं को जगाना,
एक झोंके ने बुझाया हाथ का भी दीप लेकिन,
मत बना इसको पथिक तू बैठ जाने का बहाना,
एक कोने में हृदय के आग तेरे जग रही है,
देखने को मग तुझे जलना पड़ेगा ही, मुसाफिर;

साँस चलती है तुझे चलना पड़ेगा ही मुसाफिर ।

वह कठिन पथ और कब, उसकी मुसीबत भूलती है,
साँस उसकी याद करके भी अभी तक फूलती है;
यह मनुज की वीरता है या कि उसकी बेहया‌ई,
साथ ही आशा सुखों का स्वप्न लेकर झूलती है,
सत्य सुधियाँ, झूठ शायद स्वप्न, पर चलना अगर है,
झूठ से सच को तुझे छलना पड़ेगा ही, मुसाफिर;

साँस चलती है तुझे चलना पड़ेगा ही मुसाफिर ।


16. दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! – Harivansh Rai Bachchan Poems in Hindi

हो जाय न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहीं ।
यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है,
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।।

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे ।
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है,
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है ।।

मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विह्वलता है,
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।।


Also Read:


Scroll to Top